डॉ॰ राधाकृष्णन का जन्म तमिलनाडु के तिरूतनी ग्राम में 5 सितम्बर 1888 को हुआ था उनके पिता का नाम 'सर्वपल्ली वीरास्वामी' और माता का नाम 'सीताम्मा' था डॉ॰ राधाकृष्णन भारत के प्रथम उप-राष्ट्रपति (1952 - 1962) और द्वितीय राष्ट्रपति रहे। वो एक आदर्श शिक्षक, महान दार्शनिक और विचारक थे। उनके श्रेष्ठ गुणों के कारण भारत सरकार ने सन 1954 देश के सर्व्वोच सम्मान “भारत रत्न” से सम्मानित किया। उनका जन्मदिन (5 सितम्बर) भारत में शिक्षक दिवस के रूप में भी मनाया जाता है वह बहुत ही अच्छे शिक्षक थे और उनके विचार भी बहुत महान थे तो आइये जानते हैडॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के अनमोल विचार

कोई भी आजादी तब तक सच्ची नहीं होती,जब तक उसे विचार की आजादी प्राप्त न हो. किसी भी धार्मिक विश्वास या राजनीतिक सिद्धांत को सत्य की खोज में बाधा नहीं देनी चाहिए

भगवान की पूजा नहीं होती बल्कि उन लोगों की पूजा होती है जो उनके नाम पर बोलने का दावा करते हैं।

अगर हम दुनिया के इतिहास को देखे, तो पाएंगे कि सभ्यता का निर्माण उन महान ऋषियों और वैज्ञानिकों के हाथों से हुआ है,जो स्वयं विचार करने की सामर्थ्य रखते हैं,जो देश और काल की गहराइयों में प्रवेश करते हैं,उनके रहस्यों का पता लगाते हैं और इस तरह से प्राप्त ज्ञान का उपयोग विश्व श्रेय या लोक-कल्याण के लिए करते हैं।

दुनिया के सारे संगठन अप्रभावी हो जायेंगे यदि यह सत्य कि प्रेम द्वेष से शक्तिशाली होता है उन्हें प्रेरित नही करता
किताबें पढ़ने से हमें एकांत में विचार करने की आदत और सच्ची खुशी मिलती है।

ज्ञान हमें शक्ति देता है, प्रेम हमें परिपूर्णता देता है।

शिक्षा का परिणाम एक मुक्त रचनात्मक व्यक्ति होना चाहिए जो ऐतिहासिक परिस्थितियों और प्राकृतिक आपदाओं के विरुद्ध लड़ सके.

पुस्तकें वह साधन हैं जिनके माध्यम से हम विभिन्न संस्कृतियों के बीच पुल का निर्माण कर सकते हैं।

केवल निर्मल मन वाला व्यक्ति ही जीवन के आध्यात्मिक अर्थ को समझ सकता है स्वयं के साथ ईमानदारी आध्यात्मिक अखंडता की अनिवार्यता है

शिक्षा के द्वारा ही मानव मस्तिष्क का सदुपयोग किया जा सकता है. अत:विश्व को एक ही इकाई मानकर शिक्षा का प्रबंधन करना चाहिए.

सौजन्य :- अच्छी खबर ।