भूमिका मानव का हजारों वर्ष पहले सृजन हुआ और उसने प्रकृति की गोद में आंखें खोली उसने पाया कि इसके परि-आवरण (पर्यावरण) में उसके जीवन जीने के असीमित वह पर्याप्त मात्रा में साधन उपलब्ध है । उसने प्रकृति का सहारा लेकर अपने वंश को आगे बढ़ाया और समुदाय बनाए सभ्यता और फिर एक प्रांत और प्रांत से समाज का निर्माण किया ।
समाज समाज निर्माण मात्र एक व्यक्ति से नहीं बल्कि अलग-अलग जाति धर्म विशेष के समूह को कहा गया है, जहां एक ही समूह नहीं बल्कि अलग-अलग समुदाय व्यवस्थित व सुचारू ढंग से व्यवस्था का निर्माण करते हैं । समाज अलग-अलग तबके के लोगों से बनता है ।
पर्यावरण व समाज आज जो समाज इतना फल फूल रहा है यह सब उसके पर्यावरण की देन है जब से उसने धरती पर कदम रखा पर्यावरण ने उस पर एहसान किए और मनुष्य आज भी पर्यावरण के एहसानो तले दबा है और पर्यावरण का शोषण कर रहा है। प्रकृति में एक छोटी से छोटी वनस्पति क्यों ना हो मनुष्य उन सब का कर्ज़दार है । सबसे लंबी नदी हो या फिर असीम समुद्र मानव कि आज तक प्यास नहीं बुझा पाए । प्रकृति में मानव ही इतना खुदगर्ज प्राणी निकला जिसने प्रकृति का हद से ज्यादा शोषण किया ।
पर्यावरण पर्यावरण का तात्पर्य हमारे आसपास का वातावरण चाहे वह खेत हो या पेड़ो से भरा घना जंगल या फिर सीमेंट कंक्रीट से सजा शहर। आमतौर पर हम पर्यावरण से प्रकृति का पर्याय लेते हैं जो सृजन से ही अत्यधिक सुंदर है। पर्यावरण का सार इतना अधिक है कि इसकी विशेषता के लिए स्याही कम पड़ जाएगी, पर प्रकृति और पर्यावरण का सौंदर्य कम ना हो।
उपसंहार आज मनुष्य पर्यावरण की परवाह किए बिना ही इसमें परिवर्तन ला रहा है। मनुष्य के परि-आवरण में पेड़ों का होना अनिवार्य है, परंतु मनुष्य के परि-आवरण में प्रकृति की सौंदर्यता नजर नहीं आ रही है। अगर ऐसा ही रहा तो बहुत जल्दी ही मानव का अस्तित्व मिट जाएगा जैसे धीरे धीरे प्रकृति का मिट रहा है ।
समाज समाज निर्माण मात्र एक व्यक्ति से नहीं बल्कि अलग-अलग जाति धर्म विशेष के समूह को कहा गया है, जहां एक ही समूह नहीं बल्कि अलग-अलग समुदाय व्यवस्थित व सुचारू ढंग से व्यवस्था का निर्माण करते हैं । समाज अलग-अलग तबके के लोगों से बनता है ।
पर्यावरण व समाज आज जो समाज इतना फल फूल रहा है यह सब उसके पर्यावरण की देन है जब से उसने धरती पर कदम रखा पर्यावरण ने उस पर एहसान किए और मनुष्य आज भी पर्यावरण के एहसानो तले दबा है और पर्यावरण का शोषण कर रहा है। प्रकृति में एक छोटी से छोटी वनस्पति क्यों ना हो मनुष्य उन सब का कर्ज़दार है । सबसे लंबी नदी हो या फिर असीम समुद्र मानव कि आज तक प्यास नहीं बुझा पाए । प्रकृति में मानव ही इतना खुदगर्ज प्राणी निकला जिसने प्रकृति का हद से ज्यादा शोषण किया ।
पर्यावरण पर्यावरण का तात्पर्य हमारे आसपास का वातावरण चाहे वह खेत हो या पेड़ो से भरा घना जंगल या फिर सीमेंट कंक्रीट से सजा शहर। आमतौर पर हम पर्यावरण से प्रकृति का पर्याय लेते हैं जो सृजन से ही अत्यधिक सुंदर है। पर्यावरण का सार इतना अधिक है कि इसकी विशेषता के लिए स्याही कम पड़ जाएगी, पर प्रकृति और पर्यावरण का सौंदर्य कम ना हो।
उपसंहार आज मनुष्य पर्यावरण की परवाह किए बिना ही इसमें परिवर्तन ला रहा है। मनुष्य के परि-आवरण में पेड़ों का होना अनिवार्य है, परंतु मनुष्य के परि-आवरण में प्रकृति की सौंदर्यता नजर नहीं आ रही है। अगर ऐसा ही रहा तो बहुत जल्दी ही मानव का अस्तित्व मिट जाएगा जैसे धीरे धीरे प्रकृति का मिट रहा है ।
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