मेरी जिंदगी का पहला सबसे थकाने वाला ट्रिप था ये , जब हम अपने स्थान से प्रस्थान कर रहे थे तब हमें इसका अंदाजा भी नही था कि ये यात्रा जीवन का सबसे थकाने वाला व सबसे लंबा होने वाला है , हम 8 बजे सुबह स्यूल खड्ड से निकले गिंडपुर के लिए ये सोच कर की रास्ते मे कोई गाड़ी या बस मिले तो चढ़ चलेंगे परंतु ये रास्ता बिना बस या गाड़ी के तय करना था ये हमे तब ज्ञात हुआ जब हम 5 किमी चलकर और आगे बढ़ने लगे , तब हमें इसका एहसास हुआ कि भाईसाहब अब हमें इस रास्ते पर कोई बस या सवारी गाड़ी नही मिलने वाली खैर किसी तरह रास्ते भर गाने सुनते हुए निकल गए अजब कुछ किलोमीटर चल कर थक गए और गले ने भी चीख़ चीख़ कर पानी मांगना शुरू कर दिया तो हम एक स्थान पर पानी पीने ठहरे बहुत भले लोग थे वो , तुरंत पानी दे दिया उन्होंने मुझे सराहा भी की मैं एक ट्रैवेल ब्लॉगर हूँ । इसके साथ ही हम आगे की ओर बढ़ चले और अंत मे हम एक जगह और पहुँचे ये हमारे एक साथी के सगे संबंधी थे वह कुछ पल रुके थोडा बहुत खाया पर मैंने नही खाया मुझे आभास हो रहा था कि अभी हमे काफी दूरी और तय करनी है , और अगर पेट भर गया तो चलना दूभर हो जाएगा इस वजह से मैंने पेट भर पानी पिया और थोड़ा सा सुस्ताया फ़ोन को चार्ज में लगाकर आराम किया आधा घंटा रुकने के बाद हम फिर चल पड़े इन आधे घंटो में मैंने अपने पैर को आराम नही दिया बस चलता रहा इधर उधर और उसके साथ ही पैरो को ठंडे पानी से धोया ताकि जो दर्द है उसमें आराम मिल सके वैसे भी 8 किलोमीटर की दूरी तय करना वो भी पैदल आसान बात नही है खासकर जब आप किसी पहाड़ी इलाके में चल रहे हो , जहां कभी चढ़ाई आ जाये और फिर अचानक से उतराई ढलान आ जाए लेकिन हम चले , मेरे एक साथी का हाल बेहाल हो गया था , वो फिर से चल सकने को तैयार नही था पर उसको बेमन चलना ही पड़ा क्योंकि हम अभी भी अपनी मंजिल से 6 किलोमीटर दूर थे , फिर वहां से निकलने के बाद हम चलते रहे और ये रास्ता कोई सड़क नही था बल्कि ये एक घना जंगल था जिसके बीच से पगडण्डी थी जिसके एक तरफ खाई और दूसरी तरफ घना जंगल , पता नही तकरीबन आधा घंटा चलने के बाद एक सपाट उबर खाबड़ रास्ता मिला जो सिर्फ पत्थरों से बना था उस पर चले उसके बाद तो घना जंगल रस्ते के बगल में ही खाई और कदमों के नीचे पानी की धारा बहने लगी मुझे तो रॉन्ग टर्न का वो जंगल याद आ गया फिर धीरे धीरे मेरे मन मे वो सभी फिल्मे जो मैंने देखी थी आज तक जिसमे इस जंगल और पहाड़ दिखाया गया डरावने चित्र मस्तिष्क पटल पर उभर कर आने लगे , लेकिन इसके बावजूद मैं वीडियो बनाता रहा और आस पास देखता हुआ चलता रहा । यहाँ पर चढ़ाई लगभग खड़ी थी समझो और इस रास्ते पर भी छोटे बड़े पत्थर थे समझ नही आ रहा था कि ये पत्थर आ कहाँ से रहे हैं क्योंकि आस पास तो ऐसा पहाड़ था ही नही बस जंगल और जंगल के पहाड़ थे ऐसे छोटे बड़े पत्थर वाले पहाड़ नही दिखे , फिर किसी तरह मशक्कत करके ऊपर तक पहुँचे और फिरस सपाट उबर खाबड़ रास्ता शुरू हो गया फिर तकरीबन आधा घंटा चलने के बाद हम एक साफ सुथरे से रोड पर पहुँच गए मेरा मन एक दम से प्रसन्न हो गया दिल मे गुब्बारे फूटने लगे कि आखिर कार मैं उस घने जंगल वाली वादियों से बाहर तो आया , फिर उस रोड पर गाड़िया आती जारी दिखाई देने लगी , यहां लगभग अधिकतर दुपहिया वाहन ही थे और अगर चौपहिया वाहन भी अगर गुजरता तो लोगो से भरा हुआ गुजरता इससे मुझे ज्ञात हुआ कि यहां पर गाड़ियाँ कम ही आती जाती है जैसे हमारी दिल्ली में कभी सड़क खाली नही रहती मगर यहां तो मैं सड़क पर ही सो गया इतना खुश हो गया कि , लेकिन सोने के बाद हिम्मत नही हुई कि दुबारा उठू फिर किसी तरह से मन मारकर उठा लेकिन अब चलने की हिम्मत खत्म हो गयी थी , बगल से साथ ने जवाब दिया बस कुछ दूर और बचा है मगर मुझे भरोसा नही हुआ क्योंकि सिर्फ कुछ दूर कहकर हम अब तक 12 से 13 किलोमीटर चल चुके थे , पर फिर भी मैं चल दिया फिर हमें 20 मिनट और लगा यानी लगभग ये फासला भी 2 से 3 किलोमीटर का होगा साहब ये तो मुझे ज्ञात हो गया मैंने मैप चालू कर लिया था यूँ कहिए 😁😁😁, फिर क्या हुआ जाकर यूट्यूब पर वीडियो देखिये कितना मज़ा आया कितना सजा मिला सब आपको यूट्यूब पर मिलेगा सर्च कीजिए मुसाफ़िर निज़ाम Musafir Nizam
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