मेरी जिंदगी का हरिद्वार की ओर ये दूसरा रुख था हरिद्वार की आरती में शामिल होना भी दूसरी बार था , फिरसे यहाँ पहुँचा और हरिद्वार के दर्शन हुए , कुछ नया नही था जैसा कि मैंने ऋषिकेश में ही अपने हृदय भाव व्यक्त किये थे , एक दम हर चीज जानी पहचानी थी , कुछ नया नही था , है रास्ते जरूर भूल गया था थोड़ा सा मगर घाट के दर्शन होते ही सब कुछ स्मरन हो आया , पुराण मार्ग स्वतः ही आंखों के आगे प्रदशित होने लगे इस लगा कि मैं यह अंजान नही हूँ , अपने हुनर को बाहर लाते हुए तुम्हारे प्यारे भाई ने कैमरा निकाला और फिर शुरू हो गया मुसाफ़िर निज़ाम का मुसाफ़िरनामा , अब आप सोचेंगे कि मैं तो अभी कुछ देर पहले ऋषिकेश के नेचर केअर विलेज में था तो हरिद्वार कैसे , तो हुआ यूं भाई की तुम्हारे भाई ने उसी दिन की टिकट बना ली थी वापसी की , इतना मत सोचो आखिर घर भी तो लौटना है मुझ भटकते पंछी को आखिर मेरा भी घर ठिकाना है भाई इतना मत सोचो आगे सुनो , तो टिकट मैंने एक दिन पहले ही काट ली थी और वो RAC 23 था यूँ तो हरिद्वार से दिल्ली के रास्ते इतनी मारा मारी नही होती , हालांकि जब मैं स्टेशन पहुँचा तो टीकट अभी भी RAC 10 पर था मुझे लगा अगर टिकट कन्फर्म नही हुआ तो गार्ड के केबिन के बैठ के जाऊंगा भले ही फाइन कटवाना पड़े और फाइन तो काटने से रह उसके लिए पैसे देने पड़ते हैं जो मेरे पास मात्र 20 रुपये थे रात के 7 बजे तक , बाकी कहानी स्टेशन पर जाकर सुनाऊंगा अभी हरिद्वार वापस चलते हैं , तो हरिद्वार में एक भाई से मैंने बोल के सर्व प्रथम अपनी एक तस्वीर खिंचवाई अपने ही फ़ोन में भाई इतना मत सोच करो , और बड़े ही शान से की मैं एक यूट्यूबर हूँ अपने फ़ोन को लेकर पूरे घाट पर रिकॉर्डिंग करता हुआ घूमता रहा , हालांकि डर भय आशंका मुझे भी थी कि कही कोई महानुभाव मेरा फ़ोन लेकर न भाग जाए मगर मैंने अपने चेहरे पर ऐसा कुछ प्रतीत नही होने दिया कि मुझे डर लग रहा है ऊपर से जब भीड़ पास से गुजरती तो मैं और जोर से अपने कैमरे में बात करने लगता इससे मुझे देख के सभी लोग साइड हो जाते की मैं रिकॉर्डिंग कर रहा हूँ तो ऐसे करके मैंने वह एक घंटा बिता दिया और ऊपर आसमान में बादल महाशय शायद मेरी ही राह ताकते रहे हो वो लोग भी अगर पूरे आसमान काले किये जा रहे थे और उन्हें देख कर मेरी धड़कने और तेज हो गयी कि अगर बारिश तेज़ हो गयी तो कैसे स्टेशन पहुँचूंगा , और इस चक्कर मे मैं स्वतः ही घाट से निकल कर बाहर आ गया हां बाहर आने में मुझे दस मिनट लग गए अब हर की पौड़ी घाट कोई छोटा मौत घाट तो है नही एक छोड़ से दूसरे छोड़ तक आने में वक़्त तो लगता ही है । तो वो लगा भाई , और मैं 100 या 200 मीटर पैदल चलने के बाद देखा कि बारिश रिमझिम रिमझिम हो ही रही है और रुकने का नाम ही न ले तो अंततः मुझे एक बेट्री रिक्शा मिला मैं उसपे बैठ गया बोला कितने लोगे तो बोला 20 रु मैंने कहा यार 2 किमी भी नही है , तो वो  बोला भी कैसे भी जाओगे तो 20 ही लगेगा और फिर उसने कुछ ही देर म स्टेशन पहुँचा दिया , अब 40 में से 20 ही बचे तो उस 20 का मैंने क्या किया खाना खाया की पानी पिया वो आप हमारे आने वाले वीडियो में देख लेना मुसाफ़िर निज़ाम (Musafir Nizam ) चलो करते हैं नेक्स्ट ट्रिप का इंतेज़ाम ❤️❤️


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