प्रकृति हमारी वो माँ है जिसने हमें जन्म दिया और सर्वश्रेष्ठ चीज़ों से परिपूर्ण किया मानव को जीवन निर्वाह का तरीका सिखाया, उसे विकास करना सिखाया वह प्रत्येक वस्तु प्रदान की जो मनुष्यों के जीवन की मौलिक इकाई रही, सांस के लिए प्राणवायु जीने के लिए उचित जलवायु और साथ ही पीने के लिए जल, चलने के लिए थल मनोरंजन के लिए जीव जंतुओं का निर्माण किया ताकि मनुष्य इनके संग अपने जीवन चक्र को बनाये रखे चाहे आहार चक्र के द्वारा हो या एक दूसरे पे आश्रित होने की बात हो, सुंदर वादियां दी नज़ारे को, जंगल दिए सहारे को और हर स्तिथि प्रदान की हमें उसके काबिल बनाया प्रकृति ने पेड़ दिए ताकि हमें स्वच्छ प्राणवायु मिल सके, पहाड़ पर्वत शिखर दिया ताकि जलाबन्दन हो बिना किसी फ्रिज के बर्फ भी जमा के दिया कही गर्म पानी तो कहीं शीतल जल का भंडार दिया समुंदर दिया उसमे विशालकाय जीव जंतु दिए कुछ बहुत ही खतरनाक तो कुछ बड़े ही शांत स्वभाव के । ख़तरनाक कोई नही होता ये तो जीव प्रवृत्ति होती है अगर उनके सम्मुख कोई संकट से आभास हो तो हिंसक रूप धारण करना निश्चित है हम मनुष्य भी तो यही कर रहे हैं मगर बिना वजह । प्रकृति ने हमे इस सौंदर्य का रक्षक बना के भेजा ताकि हम स्वयं भी इस प्रक्रिया का हिस्सा बन सके और साथ मे इनकी रक्षा कर सके मगर कहते हैं ना कि "जिसको हम रक्षक समझ बैठे वह भक्षक निकल" ये तो प्रथा मनुष्य ने ही शुरु की है मगर खत्म प्रकृति करेगी कैसे वो तो आप देख ही रहे हो कभी कोरोना तो कभी जलप्रलय कहीं भूकंप कहीं सुनामी तो कहीं ज्वालामुखी फटना जंगल मे आग लगना और अंधाधुंध पेड़ की कटाई से ऑक्सीजन की कमी हमारे और बाढ़ का आना ये सब प्रकृति का क्रोध है हिंसक रूप है जो प्रकृति के अहित करने पर हमें मिल रहा है , हमे वही प्राप्त हो रहा है जो हमने बोया है , जितने लोग उतने वाहन जितने लोग उससे ज्यादा घर जितने लोग उससे आधे से आधे पेड़, सांस लेने वाले 100 गुणा अधिक लोग, खाना उगाने वाले 100 और खाने वाले करोड़ो लोग वही जहां अनाज उगाया जाता है मतलब खाली ज़मीन न के बराबर मतलब आबादी इतनी ज्यादा हो गयी कि खेती के लोए भी जमीन प्राप्त नही हो पा रहे । लोगो ने अपने आवास के लिए जंगलो को काट दिया, अपने स्वार्थ के लिए लकड़ी और जंगली जानवरों का सौदा किया , मनुष्य ने क्या नही किया , किस प्रकार प्रकृति माँ का शोषण नही किया जमीन से ममता छीन ली (उवर्रक क्षमता) हवा से समता छीन ली (अशुद्ध, शुद्ध वायु) पानी धरती का खून तक चूस लिया (जमीन के अंदर का पानी) आंगनों से चहकपन छीन लिया (पक्षियों, चिड़ियों की चहचहाहट ) पहाड़ पर्वतों पर घर बना लिए हिलस्टेशन बना लिए उन्हें गन्दा कर दिया , नदियों पर बांध बना दिये पहाड़ तोड़ रास्ते बना दिये । क्या कुछ ज्यादती नही किया मनुष्य ने प्रकृति के साथ , ये सभी आपदाएं मनुष्यों के कर्मो का फल ही है जो दर्द दुख मनुष्य ने प्रकृति को दिया बस वही दर्द प्रकृति मनुष्यो कल लौट रही है तो इसमें डरना कैसा शौक़ से लो वो दर्द जो तुमने प्रकृति को दिए हैं वो तुम्हारा ही दिया कर्म तुम्हे लौटाया जा रहा है
संभल जाओ
इसका हल आगे के लेख में...
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